Tuesday, December 18, 2012

कम बैक !

ब्लॉग  लिखना  तो  शायद 2-3 बरस पहले शुरू किया था पर समय नहीं मिला  या इन्टरनेट नहीं मिला :
अब  जबकि नेट नेट  भी  हें और  समय  भी  है फिर  से  लिखने का मूड हो  रहा  है .
इस दौरान मै  एक  private एग्जीक्यूटिव  से  सरकारी  मास्टर  बन  गया  हूँ .
अब लिखने का मजा ही कुछ और आयेगा .

कम बैक !

Monday, August 20, 2012

vapsi

मै   वापस आ  रहा हूँ  ...............................................







Monday, December 28, 2009

कुरजां

सूती थी रंग महल में,

सूती ने आयो रे जंजाळ,

सुपना रे बैरी झूठो क्यों आयो रे

कुरजां तू म्हारी बैनडी ए, सांभळ म्हारी बात,

ढोला तणे ओळमां भेजूं थारे लार।

कुरजां ए म्हारो भंवर मिला देनी ए।

सुपनो जगाई आधी रात में २

तनै मैं बताऊँ मन की बात

कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलाद्यो ऐ sss

संदेशो म्हारे पिया ने पुगाद्यो ऐ !!

तूं छै कुरजां म्हारे गाँव की

लागे धर्म की भान

कुरजां ऐ राण्यो भंवर मिलाद्यो ऐ

संदेशो म्हारे पिया ने पुगाद्यो ऐ !!

पांखां पै लिखूं थारै ओळमों

चान्चां पै सात सलाम

संदेशो म्हारै पिया ने पुगाद्यो ऐ !!

कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलाद्यो ऐ !!

लश्करिये ने यूँ कही

क्यूँ परणी छी मोय

परण पाछे क्यों बिसराई रे

कुरजां ऐ भंवर मिलाद्यो ऐ

कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलाद्यो ऐ !!

ले परवानो कुरजां उड़ गई

गई-गई समदर रे पार

संदेशो पिया की गोदी में नाख्यो जाय

संदेशो गोरी को पियाजी ने दीन्यो जाय !!

थारी धण री भेजी मैं आ गई

ल्याई जी संदेशो ल्यो थे बांच

थे गोरी धण ने क्यों छिटकाई जी

कुरजां ऐ साँची बात बताई जी

के चित आयो थारे देसड़ो

के चित आयो माय’र बाप

साथीड़ा म्हाने सांच बतादे रे

उदासी कियां मुखड़े पे छाई रे !!

आ ल्यो राजाजी थारी चाकरी

ओ ल्यो साथीड़ा थांरो साथ,

संदेशो म्हारी मरवण को आयोजी

गोरी म्हाने घरां तो बुलाया जी

नीली घोड़ी नौ लखी

मोत्यां से जड़ी रे लगाम

घोड़ी ऐ म्हाने देस पुगाद्यो जी

गोरी से म्हाने बेगा मिलाद्यो जी !!

रात ढल्याँ राजाजी रळकिया

दिनड़ो उगायो गोरी रे देस

कुरजां ऐ सांचो कोल निभायो ऐ

कुरजां ऐ राण्यो भंवर मिलाया ऐ !!

सुपनो जगाई आधी रात में

तने मैं बतायी मन की बात

कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिलाया ऐ !!

सुपनो रे बीरा फेरूँ -फेरूँ आजे रे !!

Thursday, December 24, 2009

यह मेरी डायरी है

यह मेरी डायरी है |
यहाँ कोई देखे या ना देखे, पढ़े या ना पढ़े यह विचारो का एक पन्ना है जहाँ हम अपने विचार लिख सकते है।
कल महाभारत देख रहे थे| बनने वाले ने क्या खूब बनाई! आज के धारावाहिकों से महाभारत और रामायण की तुलना नहीं हो सकती|
आज अर्थ हावी है, २०-३० मिनिट में १५ मिनिट तो विज्ञापनों में ही चले जाते है न कोई शोध न कोई किरदार से जुड़ाव न निर्देशक का न दर्शको का |

प्रसंग था कि अर्जुन द्रोपती को जीतकर अपनी माता के पास लाते है|
उपहास मे भिक्षा कहते है .................................
फिर अपनों से बड़ो के साथ उपहास का दंड, पूर्वजन्म का द्रोपती को फल , कृष्ण का सबको सत्य बताना .........
वाह जी वाह
रोमांच अभी भी है...............

Wednesday, December 23, 2009




कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कि ज़िंदगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाओं में
गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी
यह तिरागी जो मेरे ज़ीस्त का मुकद्दर है
तेरी नज़र की शुआँओं में खो भी सकती थी

अजब न था कि मैं बेगाना-ए-आलम हो कर
तेरे जमाल की रानाइयों में खो रहता
तेरा गुद्‌दाज़ बदन, तेरी नीमबाज़ आँखें
इन्हीं हसीन फ़ज़ाओं में मैं हो रहता

पुकारतीं मुझे जब तलख़ियाँ ज़माने की
तेरे लबों से हलावत के घूँट पी लेता
हयात चीखती फिरती बरेहना-सर और मैं
घनेरी ज़ुल्फ़ों की छाओं में छुप के जी लेता

मगर ये हो न सका
मगर ये हो न सका और अब ये आलम है
कि तू नहीं, तेरा ग़म, तेरी जुस्तुज़ू भी नहीं
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे
इसे किसी के सहारे की आरज़ू भी नहीं

ज़माने भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले
गुज़र रहा हूँ कुछ अनजानी रहगुज़ारों से
मुहीब साये मेरी सिमट भरते आते हैं
हयात-ओ-मौत के पर-हाल खार-ज़ारों से

न कोई जदा, न मंज़िल, न रोशनी का सुराग
भटक रही है ख़यालों में ज़िंदगी मेरी
इन्हीं ख़यालों में रह जाऊँगा कभी खो कर
मैं जानता हूँ मेरे हम-नफ़स, मगर यूँ हीं
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है


कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
के जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिये
तू अबसे पहले सितारों में बस रही थी कहीं
तुझे ज़मीं पे बुलाया गया है मेरे लिये
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
के ये बदन ये निगाहें मेरी अमानत हैं
ये गेसुओं की घनी छाँव हैं मेरी ख़ातिर
ये होंठ और ये बाहें मेरी अमानत हैं
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
के जैसे तू मुझे चाहेगी उम्र भर यूँही
उठेगी मेरी तरफ़ प्यार की नज़र यूँही
मैं जानता हूँ के तू ग़ैर है मगर यूँही
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है

कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
के जैसे बजती हैं शहनाइयां सी राहों में
सुहाग रात है घूँघट उठा रहा हूँ मैं (२)
सिमट रही है तू शरमा के मेरी बाहों में
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है

Monday, December 21, 2009

hi dear all

this is pankaj swami dil se